जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का पता चले, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-पढ़ना, खेलना, खाना,आदि।
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं।
जिन क्रियाओं के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है, वे सकर्मक क्रिया हैं; जैसे-लड़की पत्र पढ रही है।
सकर्मक क्रियाओं के अन्य दो भेद हैं
(i) एककर्मक क्रिया – जिन सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, जैसे - नेहा बिस्तर लगा रही है।
(ii) विकर्मक क्रिया – जिन सकर्मक क्रियाओं में एक साथ दो-दो कर्म होते हैं ; जैसे - राहुल अपने भाई के साथ मैच खेल रहा है।
जिस क्रिया में कर्म नहीं पाया जाता है, अकर्मक क्रिया कहलाती है;
जैसे-राधा इंजीनियर है।
संरचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होते हैं
(i) संयुक्त क्रिया – जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर किसी एक पूर्ण क्रिया का बोध कराती हैं, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं;
जैसे- बच्चे दिन भर सोते रहते हैं।
(ii) नामधातु क्रिया – जो संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण आदि शब्दों से बनती है उसे नामधातु क्रिया कहते हैं;
जैसे - बात से बतियाना, अपना से अपनाना, आदि
iii) प्रेरणार्थक क्रिया – जिस क्रिया मे कर्ता स्वयं न करके दूसरों को करने की प्रेरणा देता है, वह प्रेरणार्थक क्रिया हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं।
प्रेरक कर्ता - प्रेरणा देने वाला, जैसे – मालिक, अध्यापिका आदि।
प्रेरित कर्ता - प्रेरित होने वाला जैसे – नौकर, छात्र आदि।
(iv) पूर्वकालिक क्रिया – जिस वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले यदि कोई क्रिया आ जाए, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं।
जैसे - छात्र ने पुस्तक से देखकर उत्तर दिया